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स्वतंत्र भारत ने विकसित राष्ट्र होने की ओर एक लंबा सफर तय कर लिया है, और अभी आगे का लंबा सफर हमें जल्दी पूरा करना है। बताते हैं, भारत कम से कम 2035 तक युवाओं का देश है, उसके बाद हमारी आबादी में युवाओं की तादाद कम होती जाएगी। इसलिए अगले 15 वर्ष हमारे लिए बहुमूल्य हैं। हमें 1947 में जो भारत मिला था, वह अंग्रेजी शासन द्वारा बुरी तरह प्रताड़ित व शोषित था। कृषि अर्थव्यवस्था भारत की रीढ़ थी, गुलामी के दौर में सबसे पहले उसी पर प्रहार हुआ था। साल 1901 से 1941 के बीच भारत में प्रति व्यक्ति खाद्यान्न उत्पादन में 24 प्रतिशत की गिरावट आई थी। तब देश की 70 प्रतिशत जमीन पर जमींदारों का कब्जा हो गया था। अंग्रेज और जमींदार मिलकर फसल व मेहनत का आधा हिस्सा छीन लेते थे, लेकिन आज न तो अंग्रेज हैं और न जमींदार। व्यापक समाज को सामने आने का मौका मिला। नतीजा सामने है, भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार पीपीपी (परचेजिंग पावर पैरिटी) के हिसाब से दुनिया में तीसरे स्थान पर है और भारतीय अर्थव्यवस्था का स्थान दुनिया में पांचवां माना जाता है। आज हमारी अर्थव्यवस्था उस ब्रिटेन से भी बड़ी है, जिसने हमें कभी गुलाम बना रखा था। अनेक पैमाने हैं, जिनसे भारत की आर्थिक मजबूती को देखा जा सकता है। 1946 के आसपास भारतीय अर्थव्यवस्था में कुल बचत सकल राष्ट्रीय उत्पाद का महज 2.75 प्रतिशत थी, जो 1971-75 में 12.35 प्रतिशत और मार्च 2019 में 30.1 प्रतिशत पहुंच गई। बचत से यह संकेत मिलता है कि हम नए निवेश में कितने सक्षम हैं। निवेश की हमारी क्षमता बढ़ती जा रही है। ज्यादा दशक नहीं बीते हैं, दुनिया भारत की आर्थिक ताकत नहीं जानती थी। मंदी से मुकाबले के दौर में भी भारतीय अर्थव्यवस्था ने दुनिया में अपने महत्व को बेहतर ढंग से स्थापित किया।
बेशक, हमारी आर्थिक आजादी में कमियां भी हैं और तभी तो पांचवें नंबर की अर्थव्यवस्था वाला देश प्रति व्यक्ति आय के मामले में दुनिया में 100 देशों में भी शामिल नहीं है। सामाजिक पैमाने पर भारत के विकास को लंबा सफर तय करना है। संकेत स्पष्ट है कि अर्थव्यवस्था के आकार मात्र से पूरे देश को नहीं देखा जा सकता। अगर हम अंतरिक्ष विज्ञान के मामले में अग्रणी पांच देशों में शामिल हैं, तो सामाजिक विकास के पैमाने पर भी हमें पांच नहीं, तो टॉप 50 में तो रहना ही चाहिए। यदि हम टॉप सामरिक शक्तियों में शुमार किए जाते हैं, तो हमें कम से कम पांच टॉप रक्षा सामान उत्पादक देशों में भी होना चाहिए। बेशक तरक्की हुई है, सामाजिक, आर्थिक, सामरिक, हर मोर्चे पर, और आज जो भारत है, वह 1962 में नहीं था। लेकिन उतना ही सच है कि पूरे समर्पण के साथ अगर स्वतंत्र देश की सेवा होती, तो हम आज से कहीं ज्यादा मजबूत और सुरक्षित होते।
भारत में जितनी कमियां हैं, उससे कहीं ज्यादा संभावनाएं हैं। हाल के वर्षों के आंकड़ों को देखें, तो कहीं न कहीं सेवा क्षेत्र पर देश का अत्यधिक भार पड़ रहा है। सेवा क्षेत्र देश के विकास में 50 प्रतिशत से अधिक योगदान कर रहा है। चिंता यह है कि औद्योगिक योगदान 29 प्रतिशत और कृषि योगदान महज 17 प्रतिशत है। सेवा क्षेत्र को मजबूत करते हुए हमें कृषि और उद्योग पर पहले से ज्यादा ध्यान देना होगा, तभी हमारी स्वतंत्रता विकसित और सशक्त होगी।