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काल एक ऐसी चीज है जो किसी के हाथ में नहीं रहता है, समय को कोई रोक नहीं पाया है नवपदजी का चौथा दिन आ गया है कईयों ने अरिहंतों की आराधना की, सिद्धों की आराधना की, आचार्यों की भी आराधना की। बावजूद भी एक ऐसा विचार आया कि उपाध्याय को एक पद देने लायक है। कहते है शासन की शुरूआत हुई तब से लेकर आज तक की पूंजी का जो संरक्षण कर रहे है वे उपाध्याय है यदि धर्म के पास शास्त्र ही नहीं होता तो ये शासन आगे कैसे चलता?
अहमदाबाद में बिराजित प्रखर प्रवचनकार, संत मनीषि, गच्छाधिपति प.पू.आ.देव राजयश सूरीश्वरजी महाराजा श्रोताजनों को संबोधित करते हुए फरमाते है चाहे कोई देश बड़ा हो या छोटा चाहे इटली हो या बाटीकन देश हो या फिर भारत देश हो हरेक देश का अपना अपना बंधारण कॉन्स्टिट्यूशन होता है। बंधारण के मुताबिक ही देश चलता है इसी तरह छ: जीवनिकाय की रक्षा का बंधारण जिनशासन में है।
शास्त्र की हरेक पंक्ति याद नहीं रहती है पूर्व के काल में पुस्तकें नहीं लिखी जाती थी। शास्त्र को पूर्व के लोग मुखपाठ करते है काल कुछ विचित्रत्र् आ गया है। बुद्धि कम होती जा रही है। स्मृति शक्ति भी कम हो गई है हमारे दादा परदादा उधार-मंगली का व्यवहार मुखय पर याद रखते थे आज के युवान मुख पर याद नहीं रहता, इसलिए कुछ भी हिसाब करना हो तो केलकूलेटर कम्प्यूटर मोबाईल के बिना नहीं कर पाते है। ग्रहण एवं धारण करने की शक्ति घटती जा रही है।
आज के नौजुवानों के पास चिंतने की शक्ति है लेकिन ग्रहण एवं धारण करने की शक्ति नहीं है। इस ग्रहण एवं धारण करने की शक्ति को मजबूत रखने के लिए पच्चीस गुणों का वर्णन इस प्रकार बताया है अग्यारह अंग एवं चौदह पूर्व अग्यारह+चौदह=पच्चीस इन शास्त्रों का रक्षण परमात्मा आदिखर के काल से गिनों या परमात्मा महावीर के काल से एक अपेक्ष इन शास्त्रों को संरक्षण उपाध्याय के कारण ही हमें प्राप्त हुआहै। आचार्य तो शासन की धुरा को चलाने में व्यस्त रहते है उपाध्याय भगवंत इन शास्त्रों को पढऩे एवं पढ़ाने में सहायक रूप बनते है।
देश की परंपरा के मुताबिक कितने लोग उत्तराध्ययन गीता विगेरे। एक शब्द को याद करना उसे मुंह जवान कहते है एक बार मुखपाठ हो गया जब जरूर पड़े तब हम उसको बोल सकते है। अब तो बुद्धि के अनेक चमत्कार देखने को मिल रहे है। कितने साधु भगवंत अवधान करते है कोई सो तो कोई दो सौ तो कोई पांच सौ भी करते है। अब तो ऐसा लग रहा है कि चित्त की शक्ति अनंत है तो कुछ साधु हजार अवधान करने के लिए भी प्रयत्न कर रहे है।
कहते है जिन्हें ग्रंथों मुख पाठ है उन्हें स्वाध्याय भी जब अकेला बैठा है तब कुछ न कुछ गीत गुनगुनाता रहता है साधना करने वाला साधु धर्म के गंथों को मुख पाठ करता है। और दूसरों को भी करवाता है यही काम उपाध्यायजी का है।पूज्यश्री फरमाते है आप पालीताणा गए और परमात्मा के दर्शन एवं यात्रा किए बगैर वापिस लौट आए तो लोग आपको क्या कहेंगे कि घोघे जईने आव्यो डेले हाथ दई ने आव्यो याने तुम जहां गए वहां बिना कुछ किए ही लौट गए ठीक इसी तरह आपको जैनधर्म मिला है आपको दो प्रतिक्रमण-पांच प्रतिक्रमण मुख पाठ नहीं तो जैनधर्म पाने का अर्थ क्या?
तीर्थंकरों से हमें अर्थ से बताया, गणधरों ने हमें शब्द से बताकर हम पर उपाकर किया मगर उपाध्याय भगवंत ने तो इन शास्त्रों का संग्रह करके रखा तो आज हमारे उपयोग में आ रहा है।
हरेक गांवों में सैकड़ों-हजारों पुस्तक संग्रह किए हुए पाए जा रहे है। जब किसी को काम पड़ा उसका उपयोग में ले रहे है। आचार्य पद्मसागार सूरिजी ने भी कोबा में पुस्तकों का महान भंडार बनाया है। जिसे देखकर लोग आचार्य चकिंत हो रहे है राष्ट भी समझता है कि जिसके पास साहित्य नहीं उसका रा,्ट कैसे टिक सकता है। नेशकल लाईब्रेरी बनाई है जिनमें जैन धर्म के पुस्तक तो है ही अन्य धर्मों के भी पुस्तक पाए जाते है। पूज्यश्री फरमाते है इस ट्रेडिशन को मेईनटेन करने वाले उपाध्याय को लाखों करोडों बार नमस्कार है। आज इस उपाध्याय पढ़ की आराधना स्वरूप ऊं ट्री णयो उवज्झायाणं का जाप करके हमें भी उन्हें नमन करना है। 
चैत्र सुध 23 को परमात्मा महावीर का जन्म कल्याणक आ रहा है। आपका जन्मदिवस नजदीक आ रहा है आप पूर्व से उसकी कितनी सारी तैयारी करते हो। ये तो तीन लोक के नाथ का जन्म कल्याणक आ रहा है शक्ति हो तो दान पुण्य अवश्य करें। आपके आजु बाजु के पसिरको भी इस जन्म कल्याणक निमित्ते आनंद में, उत्साह में, सद्विचार में, सदाचार में रखकर इस उत्सव में जोड़े।