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विभिन्न शैक्षिक वर्गों के अंतिम वर्ष के छात्रों के लिए परीक्षाएं आयोजित कराने की घोषणा से हरियाणा सरकार को यू-टर्न लेना पड़ा है। निस्संदेह हम महामारी के दौर से गुजर रहे हैं और कहना कठिन है कि कब तक स्थितियां सामान्य होंगी। ऐसे में परीक्षाएं आयोजित करवाने का जोखिम उठाना किसी भी दृष्टि से न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता। बढ़ते संक्रमण के इस दौर में यदि परीक्षाएं आयोजित करने की कोशिश होती भी तो परीक्षा केंद्रों के कोरोना संक्रमण केंद्र में तब्दील होने का खतरा भी बड़ा था। ऐसे में जब छात्रों में परीक्षा आयोजन को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई थी, एक छात्र संगठन ने पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट ने भी सरकार से मामले के बाबत जवाब मांग लिया। इसके बाद सरकार ने बारह जून को लिये गये उस फैसले से यू-टर्न ले लिया, जिसमें विभिन्न कालेज और संस्थानों में अंतिम वर्ष व आखिरी सेमेस्टर के छात्रों की परीक्षा जुलाई में कराने की बात कही गई?थी। निश्चित रूप से इससे बड़ी संख्या में उन छात्रों की दुविधा खत्म होगी, जो मौजूदा हालात में परीक्षाएं करवाने को लेकर असमंजस में थे। सरकार ने तेइस जून के फैसले में सभी कालेजों और संस्थानों की परीक्षाएं रद्द करने की घोषणा कर दी है। निस्संदेह करिअर की दहलीज पर खड़े ये छात्र परीक्षा परिणाम में देरी से विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग नहीं ले पाते। कोरोना संकट के दौर में यह छात्रों के लिए मुश्किल था कि परीक्षा केंद्रों में सामान्य ढंग से परीक्षा दे पाते। निस्संदेह सरकार के फैसले से उन्हें राहत मिलेगी। साथ ही यदि वे औसत अंकों को करिअर की दृष्टि से बेहतर न माने, तो उनके पास फिर से परीक्षा देने का विकल्प खुला रहेगा। एनएसयूआई ने छात्रों की इसी ऊहापोह की स्थिति को देखते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

दरअसल, इससे पहले सरकार ने अंतिम वर्ष के छात्रों को छोड़कर शेष छात्रों को परीक्षा की बाध्यता से मुक्त कर दिया था। अंतिम वर्ष के छात्रों की जुलाई में होने वाली परीक्षा में पेच यह था कि हॉस्टल की अनुपलब्धता के चलते सिर्फ हरियाणा में स्थानीय छात्रों को ही परीक्षा में सुविधा मिल पाती। राज्य में बाहर रहने वाले अंतिम वर्ष के छात्रों को बाहर रहने की छूट दी गई थी। बहरहाल, अदालत के हस्तक्षेप के बाद परीक्षा के आयोजन की तार्किकता पर उठे सवालों के बाद हरियाणा सरकार ने परीक्षाएं रद्द करने का फैसला लिया है, जो वक्त का तकाजा भी है। अब अंतिम वर्ष के छात्रों को भी उनकी पिछली परीक्षाओं और आंतरिक मूल्यांकन के आधार पर अगली कक्षा में जाने का मौका मिल जायेगा। साथ ही प्रतिष्ठित पेशेवर संस्थानों में आगे की पढ़ाई की प्रतियोगिता क्वालीफाई करने के लिए जो छात्र अपने अंकों में सुधार करना चाहेंगे, स्थिति सामान्य होने पर उनके पास ऑफलाइन परीक्षा का विकल्प मौजूद रहेगा। मुश्किल वक्त में छात्रों के प्रति ऐसे ही संवेदनशील व्यवहार की जरूरत है। मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों ने इसी दिशा में कदम बढ़ाया है। महाराष्ट्र ने भी परीक्षाओं को वैकल्पिक बना दिया है। कोविड-19 के लगातार भयावह होते संक्रमण के मद्देनजर राज्य सरकारें छात्रों के हित में संवेदनशील फैसले ले रही हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय ने ऑनलाइन परीक्षा का विकल्प चुना है। दरअसल, यूजीसी को देश के शैक्षिक ढांचे में एकरूपता लाने की जरूरत है। देश में कालेज विभिन्न परिषदों, स्वायत्त संस्थानों और विश्वविद्यालय द्वारा संचालित हैं, अत: परीक्षा के मानकों में एकरूपता का अभाव नजर आता है। बहरहाल, यह परीक्षा का समय नहीं है, यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट की दखल के बाद सीबीएसई ने भी दसवीं व बारहवीं की एक जुलाई से 15 जुलाई तक होने वाली परीक्षाओं को रद्द करने का फैसला लिया है। अब सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को दोबारा इस बात पर सुनवाई करेगा कि रिजल्ट कब निकलेंगे और नया सत्र कब शुरू होगा।

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