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सोशल मीडिया कंपनी वाट्सएप की नई नीति के मामले में सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप आश्वस्तकारी है। अदालत ने उचित ही कहा है कि देश के लोग अपनी निजता की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं और उनके हितों की रक्षा करना अदालत का कर्तव्य है। साल 2014 में फेसबुक ने जब वाट्सएप को खरीदा था, तब यह कहा था कि वाट्सएप कंपनी अपने डाटा फेसबुक के साथ साझा नहीं करेगी, लेकिन वह अपने वादे पर कायम नहीं रह सकी। फिर इस जनवरी में वाट्सएप ने जो नई नीति बनाई है, उसमें यूजर्स से अतिरिक्त डाटा जुटाने की अपनी मंशा उसने साफ जाहिर की है। भारतीयों को आसान लक्ष्य समझने का उसका दुस्साहस इस तथ्य से भी पुष्ट होता है कि कंपनी ने यूरोप के लिए नीतियों का अलग मसौदा तैयार किया, जबकि भारत के लिए अलग। हालांकि, सरकार और यूजर्स की तीखी प्रतिक्रिया के बाद कंपनी ने नई नीति के क्रियान्वयन को मई तक के लिए स्थगित कर दिया था। पर इस पूरे मामले में पारदर्शिता और वैधानिक बाध्यता बहुत जरूरी है। भारत में वाट्सएप इस्तेमाल करने वालों की संख्या दिसंबर महीने में ही 46 करोड़ के पास पहुंच गई थी। ऐसे में, कंपनी की व्यावसायिक आकांक्षाएं स्वाभाविक ही जोर मार रही हैं, लेकिन लोगों की निजता में घुसपैठ की उसे इजाजत नहीं दी जा सकती। फिर वाट्सएप पर उस सोशल मीडिया कंपनी, यानी फेसबुक का मालिकाना हक है, जिसके कई कदम बेहद विवादास्पद रहे हैं, बल्कि कई तो बेहद गंभीर किस्म के हैं। हम नहीं भूल सकते कि इस पर देश के सांप्रदायिक माहौल को बिगाडऩे वाली पोस्ट और सामग्रियों में भेदभाव करने के कई संगीन आरोप अभी हाल में लगे हैं। ऐसे में, डाटा की सुरक्षा और इनकी निगरानी कितनी अहम हो जाती है, यह बताने की जरूरत नहीं होनी चाहिए। अनेक साइबर विशेषज्ञों का कहना है कि गूगल के पास हमारा काफी सारा डाटा जा चुका है और वह इनका व्यावसायिक दोहन कर काफी धन कमा भी रहा है। फेसबुक भी उसी से प्रेरित होकर वाट्सएप की नई नीति लेकर आया है। यकीनन, कानून की कमी के कारण अब तक ऐसा हुआ है और ऐसा दुनिया भर में हुआ है। लेकिन विकसित देशों ने खतरों को भांपते हुए अपने यहां कानूनी चूलें कसी भी हैं। यूरोप के लिए वाट्सएप की नई नीति इसकी पुष्टि करती है। आने वाले दिनों में, जब डाटा की जंग और अधिक तेज होगी, तब यूजर्सके हितों की निगहबानी सरकार को ही करनी होगी। इसलिए जल्द से जल्द ऐसे कानूनी प्रावधान किए जाने चाहिए कि कोई सोशल मीडिया कंपनी यूजर्स के हितों से खिलवाड़ न कर सके। दुर्योग से, हमारे देश में साइबर अपराधों की संख्या तो तेजी से बढ़ रही है, लेकिन उनमें प्रभावी सजा का संदेश अवाम तक नहीं पहुंच रहा। ऐसे में, नागरिकों का भय वाजिब है कि एक तरफ खरबपति कंपनियां होंगी, और दूसरी तरफ सामान्य पीडि़त, तब वे उनसे लडऩे का साहस भी कहां से जुटा पाएंगे? वाट्सएप की नई नीति के धमकी भरे अंदाज से नाराज कई सारे यूजर्स ने तो दूसरे वैकल्पिक एप की शरण भी ले ली है, लेकिन यह समस्या का स्थाई हल नहीं है। सरकार को इस संदर्भ में स्पष्ट नीति के साथ आगे आना चाहिए, ताकि  कोई निजी कंपनी बेजा फायदा न उठाए और ऐसी किसी हिमाकत में उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जा सके।