Head Office

SAMVET SIKHAR BUILDING RAJBANDHA MAIDAN, RAIPUR 492001 - CHHATTISGARH

शांतनु त्रिपाठी

वैश्विक मंच पर भारत के भविष्य को आकार देने का महत्वपूर्ण कार्य करने वाली ‘भारतीय विदेश सेवा’ 9 अक्टूबर यानी आज अपना 74वां स्थापना दिवस मना रही है। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्वीट कर भारतीय विदेश सेवा को शुभकामनाएं देते हुए लिखा है कि ‘विदेश सेवा के अधिकारियों द्वारा विश्व स्तर पर राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाना सराहनीय है। वंदे भारत मिशन और कोविड से संबंधित अन्य प्रयासों के दौरान हमारे नागरिकों एवं अन्य देशों के लिए इस सेवा की मदद उल्लेखनीय है।’ इस मौके पर इसी सेवा से आए तथा राजग की पिछली सरकार में विदेश सचिव रहे और वर्तमान में भारत के विदेश मंत्री का पदभार संभाल रहे डॉ. एस जयशंकर ने ट्वीट कर कहा कि ‘एमईए को मेरी शुभकामनाएं, हम हमेशा आगे बढ़े हैं, वर्तमान चुनौतियां हमें और भी अधिक मजबूत बनाती हैं। कोविड समय में आपके समर्पण और परिश्रम की विशेष रूप से सराहना की जाती है। जिस तरह से आपने वर्चुअल डिप्लोमेसी को अपने अनुकूल बनाया वह प्रशंसनीय है।’

वहीं विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने भी ट्वीट कर विदेश सेवा के अधिकारियों के शानदार कार्यों के लिए उन्हें बधाई दी। इस सबके बीच मन में एक उत्सुकता होती है कि यह सेवा क्या है, कब शुरू हुई और कैसे कार्य करती है। केंद्रीय मंत्रिमंडल के एक निर्णय द्वारा वर्ष 1946 में अस्तित्व में आई इस सेवा का सफर स्वतंत्र भारत के साथ शुरू हुआ, जो आज नए भारत के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही है। केंद्रीय लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित संयुक्त सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण कर इस सेवा में आने वाले अभ्यार्थियों को सुषमा स्वराज इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेन सर्विस की कठोर ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता है। इस सेवा के अधिकारी राजनयिक, राजदूत, उच्चायुक्त और महावाणिज्यदूत के रूप में काम करते हैं और दुनिया भर के सभी देशों में सरकार एवं भारत के लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। वास्तव में यह सेवा वैश्विक मंचों पर भारत के अग्रणी सैनिक के रूप में कार्य करती है। यह देश की रक्षा की पहली पंक्ति है, विश्व में भारतीय व्यवसायों की सुमगमता का माध्यम है और विदेश में देश के आर्थिक हित का साधन है। यही नहीं यह सेवा भारत की जीवंत संस्कृति और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए भारतीय प्रवक्ता है।

सही मायने में कहा जाए तो भारतीय दूतावास विदेश में रहने वाले हर भारतीय के घर की तरह है। विदेश में भारत और भारतीयों के हित को ध्यान में रखकर बनाई गई इस सेवा का कौशल, लचीलापन, नवाचार और समर्पण की भावना वैश्विक महामारी कोरोना के दौरान स्पष्ट हो गई है। यह बात हम सबको मालूम है कि कोरोना के कारण विश्व के तमाम देशों में लगाए गए लॉकडाउन की वजह से बहुत से भारतीय विदेश में फंसे हुए थे और परेशान हो रहे थे। जिसको देखते हुए भारत सरकार ने अपने नागरिकों को वापस लाने का फैसला किया और एक अभियान की शुरुआत की। जिसे वंदे भारत मिशन नाम दिया गया। सात मई से शुरू हुए इस अभियान के तहत खाड़ी देशों और पड़ोसी देशों के साथ-साथ अमेरिका, ब्रिटेन और सिंगापुर के लिए विशेष विमान भेजे गए।

इस मिशन के तहत सोशल डिस्टेंसिंग का कड़ाई से पालन कराते हुए 16 लाख से ज्यादा भारतीयों को अब तक वापस लाया जा चुका है। यह अभियान 200 भारतीय मिशन और विदेशों में स्थित पदों तथा देश में स्थित मंत्रालय में विभिन्न पदों पर कार्य कर रहे भारतीय विदेश सेवा के 1000 अधिकारियों की मेहनत के कारण सफल हो पाया। इस अभियान ने भारत की सबसे बड़ी कूटनीतिक पूंजी यानी भारतीय डायस्पोरा में भारत के प्रति निष्ठा का भाव मजबूत किया है। इसी तरह से ऑपरेशन समुद्र सेतु में भी भारतीय विदेश सेवा का महत्वपूर्ण योगदान रहा। 8 मई को नौसेना द्वारा चलाए गए इस अभियान का उद्देश्य कोरोना के कारण श्रीलंका, मालदीव, ईरान में फंसे हमवतनों की वापसी थी। भारतीय नौसेना के पोत जलाश्व (प्लेटफॉर्म डॉक), ऐरावत, शार्दुल और मगर (लैंडिंग शिप टैंक) ने इस अभियान में भाग लिया जो 55 दिन तक चला और समुद्र में 23 हजार किलोमीटर से अधिक दूरी तय कर 4 हजार भारतीयों को वापस लाया गया। नौसेना और भारतीय विदेश सेवा के अधिकारियों द्वारा व्यापक योजना के साथ उठाए गए कदमों का नतीजा रहा कि यह अभियान भी पूरी तरह से सफल हुआ।

कोरोना के कारण जब दुनिया के बहुत से देशों में तालाबंधी हो गई, तो विश्व भर के भारतीय राजनयिक मिशन खुले रहे। किसी देश में वह आवश्यक चिकित्सा आपूर्ति खरीद रहे थे, तो कहीं वैक्सीन प्रदाताओं के साथ बातचीत कर रहे थे। यही नहीं भारतीय विदेश सेवा के अधिकारियों और उनकी टीमों ने 150 से अधिक देशों को कोरोना के उपचार में सहायक हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन दवाएं प्रदान की हैं। भारतीय विदेश सेवा की इस मेडिकल कूटनीति ने पूरे विश्व को यह संदेश दिया है कि भारत वैश्विक स्वास्थ्य को वैश्विक मानवाधिकार के रूप में देखता है।

यही नहीं मेडिकल कूटनीति के जरिए भारत सार्क देशों को एक बार फिर एक मंच पर साथ लाने में सफल रहा। भारत की तरफ से ‘सार्क कोविड-19 इमरजेंसी फंड’ में सार्क क्षेत्र के देशों को 2.3 मिलियन अमेरिकी डॉलर की राशि की आवश्यक दवाओं, चिकित्सा उपभोग्य सामग्रियों, कोविड सुरक्षा और टेस्टिंग किट तथा अन्य उपकरणों की आपूर्ति उपलब्ध कराई गई। सार्क के मंच से भारत ने दक्षिण एशियाई देशों को यह संदेश भी दिया कि वह हमेशा की तरह “पड़ोसी प्रथम” की नीति पर ही चल रहा है।

कोरोना के इस संकट काल में भारत सिर्फ दक्षिण एशियाई देशों को ही सहयोग नहीं कर रहा है, बल्कि ‘एक्ट ईस्ट’ की नीतियों के अनुरूप म्यांमार के साथ भी अपने सम्बंधों को उच्च प्राथमिकता दे रहा है। इसके तहत कोरोना से लड़ाई में आवश्यक दवा के रूप में सामने आई हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की पर्याप्त मात्रा में भारत ने म्यांमार को आपूर्ति की। यही नहीं अपनी दो दिवसीय यात्रा पर म्यांमार गए सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे और विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने 5 अक्टूबर को म्यांमार के स्टेट काउंसलर आंग सान सू की को ‘रेमडेसिविर’ दवा की 3000 से अधिक शीशियां सौंपी। इस दवा का इस्तेमाल कोविड-19 के इलाज के लिए किया जाता है। कोरोना वायरस से संक्रमित अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को भी यही दवा दी जा रही है।

यह एक ऐसी सेवा है जो गौरव के साथ भारत की सेवा करने का एक लंबा और शानदार रिकॉर्ड रखती है। इसने भारत के राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति, मंत्रियों, सांसदों, विद्वानों, लेखकों, इतिहासकारों, अंतर्राष्ट्रीय लोक सेवकों को दिया है। यह अपने उच्चतम रैंक वाली महिलाओं के साथ समान अवसर नियोक्ता भी है। कोरोना के कारण बदली दुनिया के इस दौर में भारतीय विदेश सेवा ने अपने कार्यों से पूरी दुनिया को यह संदेश गया है कि भारत ने अपना मानवतावादी दृष्टिकोण पर अटल है। इससे दुनिया के सामने भारत नरम शक्ति बनकर उभरा है, जो शक्ति नहीं, बल्कि शांति और जगत के कल्याण के जरिए विश्वगुरू बनने की ओर अग्रसर है और यह भारतीय विदेश सेवा के कारण संभव हो रहा है।

(ये लेखक के उनके निजी विचार हैं)

tranding