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मनोज चतुर्वेदी
देशभक्ति की भावना आमतौर पर हर देशवासी में होती है। इस मामले में भारतीय खिलाड़ी भी किसी से पीछे नहीं रहे हैं। हर खिलाड़ी की चाहत होती है कि ओलंपिक और एशियाई खेल जैसे आयोजनों में वह राष्ट्रगान बजवा सकें। इन खेलों में यह अवसर सिर्फ स्वर्ण पदक जीतने वाले खिलाड़ी को मिलता है। ओलंपिक में व्यक्तिगत तौर पर यह गौरव सिर्फ अभिनव बिंद्रा को ही हासिल कर सके हैं, पर हॉकी में भारतीय टीम कई बार इस गौरव को हासिल कर चुकी है। खिलाड़ियों में देशभक्ति की बात आती है, तो हमारे जेहन में 2011 में वानखेड़े स्टेडियम में विराट कोहली के कंधों पर बैठकर सचिन तेंडुलकर की साथी खिलाड़ियों के साथ विक्ट्री लैप लगाने की तस्वीर रची-बसी है। इसी विश्व कप में फाइनल से पहले दर्शकों से खचाखच भरे स्टेडियम में सचिन के गाए जन-गण-मन को कौन भूल सकता है!


खिलाड़ियों में देशभक्ति की मिसालें देश के आजाद होने के पहले से मिलती रही हैं। हॉकी जादूगर ध्यानचंद ने 1936 के बर्लिन ओलिंपिक में हॉकी के सेमीफाइनल में फ्रांस पर 10-0 की जीत में चार गोल जमाए और फिर फाइनल में भारत को जर्मनी पर जीत दिलाने में भी अहम भूमिका निभाई। एडोल्फ हिटलर उनके खेल से इतना प्रभावित हुआ कि उन्हें संदेश भेजकर स्टेडियम के प्राइवेट बॉक्स में मिलने के लिए बुलाया। ध्यानचंद के वहां पहुंचने पर हिटलर ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया और जर्मन सेना में बड़ा पद देने का प्रस्ताव किया पर ध्यानचंद ने विनम्रता से हिटलर का प्रस्ताव ठुकरा दिया। उन्होंने भारत की सेवा करना बेहतर समझा।

इसी तरह लेफ्टिनेंट कर्नल हेमू अधिकारी की कप्तान बनने की घटना भी खासी दिलचस्प है। हेमू अधिकारी को 1956 के बाद राष्ट्रीय टीम में एकदम से भुला दिया गया था, लेकिन 1959 में वेस्ट इंडीज की टीम के खिलाफ घरेलू सीरीज में पहले चार टेस्ट में से तीन में भारत बुरी तरह से हार गया। इन टेस्टों में भारतीय टीम की कप्तानी पॉली उम्रीगर, गुलाम अहमद और वीनू मांकड़ ने की थी। भारतीय प्रदर्शन की लोकसभा तक में आलोचना होने पर हेमू अधिकारी को पांचवें टेस्ट में कप्तान बनाने का फैसला किया गया। वह उस समय धर्मशाला में सेना की ड्यूटी पर थे। उन्होंने कप्तान बनने से इनकार करते हुए कहा कि हमारे लिए व्यक्तिगत सम्मान से पहले देश है। बाद में अपने अफसर के आदेश देने पर ही वह कप्तानी करने को तैयार हुए।

महान टेनिस खिलाड़ी लिएंडर पेस में भी राष्ट्रीयता और देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई है। वह देश के अंतरराष्ट्रीय टेनिस के सफलतम खिलाड़ी हैं और अब तक 18 ग्रैंड स्लैम खिताब जीत चुके हैं। इसके बावजूद जब भी उन्हें भारतीय टीम से खेलने के लिए बुलाया गया, वह हमेशा देश के लिए जिम्मेदारी उठाने को तैयार हो गए। इस जज्बे की वजह से ही डेविस कप इतिहास में सबसे ज्यादा 44 डबल्स मैच जीतने का रेकॉर्ड उनके नाम है। पर इसके बावजूद हम अपने हीरोज का सम्मान करने में कभी-कभी चूक जाते हैं। पेस जब 2014 में रैंकिंग सुधारने की खातिर इंचिंयोन एशियाई खेलों के लिए उपलब्ध नहीं हो सके, तो खेल मंत्रालय ने कहा कि जो खिलाड़ी राष्ट्रीय ड्यूटी पर उपलब्ध नहीं होगा, उसे सरकारी सहायता नहीं दी जाएगी। इस पर पेस ने कहा था कि ‘मेरी देशभक्ति और राष्ट्रीय प्रतिबद्धता पर कोई उंगली नहीं उठा सकता।’ बात भी सही है। उन्होंने 24 साल प्रतिनिधित्व करके देश सेवा की है। ऐसी दूसरी मिसाल आपको नहीं मिलेगी।

सचिन तेंडुलकर और महेंद्र सिंह धोनी की देशभक्ति के सभी कायल हैं। ये दोनों अपनी इस भावना की वजह से ही भारतीय सेना से जुड़े हैं। भारत के 2011 का विश्व कप जीतने पर सचिन तेंडुलकर को भारतीय वायुसेना ने ग्रुप कैप्टन का ओहदा प्रदान किया था। उन्होंने वायुसेना के इस ओहदे का हमेशा सम्मान किया और वे अक्सर भारतीय वायुसेना दिवस समारोह में भाग लेने के लिए भी जाते हैं। यही नहीं, वे अपने हेलमेट में तिरंगा छपवाने वाले पहले क्रिकेटर हैं। उनकी देखा-देखी अब कई अन्य क्रिकेटर भी अपने हेलमेट पर तिरंगा लगाने लगे हैं। वहीं महेंद्र सिंह धोनी को थलसेना में लेफ्टिनेंट कर्नल की रैंक प्रदान की गई है। उन्होंने पिछले विश्व कप के बाद टेरिटोरियल आर्मी की अपनी बटालियन के साथ जम्मू-कश्मीर में दो माह की ट्रेनिंग की। पिछले विश्व कप के दौरान दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ मैच में अपने कीपिंग ग्लव्स पर टेरिटोरियल आर्मी का बलिदान बैज लगाकर देशभक्ति की एक और मिसाल कायम की। हालांकि यह कदम आईसीसी नियमों के खिलाफ था, पर देशवासियों ने उनके इस कदम की भरपूर सराहना की। धोनी को बलिदान बैज लगाने से आईसीसी के रोकने पर कहा गया कि रांची में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ वनडे मैच में भारतीय टीम के आर्मी कैप लगाकर खेलने पर आईसीसी ने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की? भारतीय टीम ने पुलवामा आतंकी घटना में शहीद हुए सैनिकों के सम्मान में ऐसा किया था। एक तो यह सामूहिक कदम था, और इसके लिए बीसीसीआई ने आईसीसी से पहले ही अनुमति ले ली थी।

देशभक्ति के मामले में टेनिस खिलाड़ी सानिया मिर्जा भी किसी से कम नहीं हैं। सभी जानते हैं कि पाकिस्तान से भारत के संबंध हमेशा तनावपूर्ण रहे हैं। सानिया मिर्जा की शादी पाकिस्तान के क्रिकेटर शोएब मलिक से हुई है। इस कारण वे भी कई बार आलोचनाओं का शिकार होती रही हैं। लोग आलोचना करते समय यह भी भूल जाते हैं कि उन्होंने तमाम मौकों पर देश की प्रतिष्ठा बढ़ाई है। कुछ समय पहले जब उन्हें तेलंगाना राज्य का ब्रैंड ऐम्बैसडर बनाया गया, तो एक बीजेपी विधायक ने कहा कि वे पाकिस्तान की बहू हैं, इसलिए उन्हें ब्रैंड ऐम्बेसडर नहीं बनाना चाहिए। इस पर उन्होंने कहा कि मैंने हमेशा भारत के लिए ही पदक जीते हैं, और मैं आखिरी सांस तक भारतीय ही रहने वाली हूं। हमें अपने खिलाड़ियों के इस जज्बे को समझने और उसे सम्मान देने की जरूरत है।

(ब्लॉग में उल्लेखित लेख लेखक के अपने निजी विचार हैं)