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Digital economy begins its long jump in India - NavBharat Times Blog

जयंतीलाल भंडारी

कोविड-19 के चलते आई आर्थिक सुस्ती के बीच भारत में डिजिटलीकरण के लिए तेजी से विदेशी निवेश आने का परिदृश्य उभरता दिखाई दे रहा है, जो खुद में एक सुकूनदेह बात है। चीनी डिजिटल कंपनियों की जगह अमेरिकी डिजिटल कंपनियों का भारत में बढ़ता प्रौद्योगिकी निवेश और बढ़ती साझेदारी डिजिटल भारत, आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया अभियान के लिए काफी लाभप्रद है।

हाल ही में दुनिया की दिग्गज टेक्नॉलजी कंपनी गूगल की होल्डिंग कंपनी अल्फाबेट के सीईओ सुंदर पिचाई ने भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के सहयोग से आयोजित कार्यक्रम में कहा कि गूगल फॉर इंडिया डिजिटाइजेशन फंड के जरिए भारत में अगले 5 से 7 साल में 10 अरब डॉलर (करीब 75,000 करोड़ रुपये) का निवेश किया जाएगा। गूगल द्वारा जियो में 33,737 करोड़ रुपये के निवेश से 7.7 फीसदी हिस्सेदारी खरीदने की घोषणा पहले ही हो चुकी है। इस तरह गूगल भी भारत में बड़े निवेश के लिए फेसबुक, क्वालकॉम तथा विभिन्न वेंचर कैपिटल कंपनियों से कदम मिलाती दिखाई दे रही है।
 
लॉकडाउन के बीच ही रिलायंस जियो और फेसबुक में ई रिटेल शॉपिंग में उतरने को लेकर बड़ी डील हुई है। फेसबुक ने जियो प्लैटफॉर्म्स में 5.7 अरब डॉलर लगाकर 9.9 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने की घोषणा की है। इस क्रम में रिलायंस का जियोमार्ट और फेसबुक का वॉट्सऐप प्लैटफॉर्म साथ मिलकर भारत के करीब 3 करोड़ खुदरा कारोबारियों और किराना दुकानदारों को पड़ोस के ग्राहकों के साथ जोड़ने का काम करेंगे। इनका लेन-देन डिजिटल होने से पड़ोस की दुकानों से ग्राहकों को सामान जल्द मिलेगा और इन दुकानदारों का कारोबार भी बढ़ेगा। बर्नस्टीन के मुताबिक जियो-फेसबुक का प्लैटफॉर्म अप्रोच भारत में कॉमर्स, पेमेंट और कंटेंट से जुड़ी 10 महत्वपूर्ण सर्विसेज का इकोसिस्टम बना रहा है। इससे 2025 तक 151 लाख करोड़ रुपए का बाजार खड़ा हो सकता है।

भारत के टेक्नॉलजी क्षेत्र की ओर वैश्विक कंपनियों के द्वारा रिकॉर्ड निवेश प्रवाहित होने के कई कारण हैं। कोरोना महामारी के कारण हुए लॉकडाउन में ऑनलाइन एजुकेशन तथा वर्क फ्रॉम होम की प्रवृत्ति बढ़ने से देश में डिजिटल दौर तेजी से आगे बढ़ा है। इस क्रम में इंटरनेट के उपयोगकर्ता छलांगें मारते हुए आगे बढ़ रहे हैं। देश भर में डिजिटल इंडिया के तहत सरकारी सेवाओं के डिजिटल होने, 32 करोड़ से अधिक जनधन खातों में लाभार्थियों को डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) से भुगतान, तेजी से बढ़ी ऑनलाइन खरीदारी, लोगों की क्रय शक्ति के अनुसार मोबाइल फोन व अन्य डिजिटल चीजों की सरल आपूर्ति के कारण भी देश में डिजिटलीकरण आगे बढ़ा है।

वैश्विक डिजिटल कंपनियों के भारत में दिलचस्पी लेने की कई वजहें हैं। भारत प्रति व्यक्ति डेटा खपत के मामले में संसार में पहले नंबर पर और मोबाइल ब्रॉडबैंड ग्राहकों की तादाद के मामले में दूसरे स्थान पर है। कोरोना ने भी डिजिटल दौर को भारी प्रोत्साहन दिया है। देश में जो डिजिटल पेमेंट जनवरी 2020 में करीब 2.2 लाख करोड़ रुपए के थे, वे जून 2020 में 2.60 लाख करोड़ रुपए के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गए हैं। टिकटॉक जैसे चीनी ऐप पर प्रतिबंध लगने के बाद भारतीय डिजिटल क्षेत्र का दायरा और बढ़ा है।

विश्व प्रसिद्ध ग्लोबल डेटा एजेंसी स्टैटिस्टा द्वारा लॉकडाउन और कोविड-19 के बाद जिंदगी में आने वाले बदलावों को लेकर जारी वैश्विक अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक 46 प्रतिशत लोगों का मानना है कि वे अब खरीदारी के लिए भीड़-भाड़ में नहीं जाएंगे और ई-कॉमर्स के माध्यम से घर बैठे उपभोक्ता वस्तुएं प्राप्त करना चाहेंगे। इसी तरह बर्नस्टीन रिसर्च की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में कोरोनाकाल में लोगों ने जिस तेजी से डिजिटल का रुख किया है, वह भारत के लिए आर्थिक रूप से उपयोगी हो गया है। अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2027-28 तक भारत में ई-कॉमर्स का कारोबार 200 अरब डॉलर से भी अधिक की ऊंचाई पर पहुंच सकता है।

देश के खुदरा कारोबार में विदेशी निवेश बढ़ने से जहां ई-कॉमर्स की रफ्तार बढ़ती गई है, वहीं इस क्षेत्र में चुनौतियां भी बढ़ी हैं। ई-कॉमर्स बाजार में उपभोक्ताओं के हितों और उत्पादों की गुणवत्ता संबंधी शिकायतें बढ़ी हैं। पाया गया है कि कई बड़ी विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियां टैक्स की चोरी करते हुए भारत में अपने उत्पाद बड़े पैमाने पर भेज रही हैं। यह काम वे इनपर गिफ्ट या सैंपल का लेबल लगाकर करती हैं। ग्लोबल डिजिटल कंपनियों द्वारा भारतीय उपभोक्ताओं के डेटा के दुरुपयोग के मामले भी सामने आए हैं। ऐसे में देश के लिए एक नई ई-कॉमर्स नीति आवश्यक है। इस नीति में अनुमति मूल्य, भारी छूट और घाटे के वित्तपोषण पर लगाम लगाने की व्यवस्था करनी होगी, ताकि सबको काम करने का समान अवसर मिल सके। नई नीति में डेटा का स्थानीयकरण शामिल करना उपयुक्त होगा, साथ ही छोटे कारोबारियों के कारोबार को डिजिटल प्लैटफॉर्म्स पर विशेष अहमियत देनी होगी।

नई ई-कॉमर्स नीति
कोविड-19 के बाद बनने वाली वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में डेटा की वही अहमियत होगी जो आज कच्चे तेल की है। इसलिए डेटा को एक अहम आर्थिक संसाधन के रूप में मान्यता देनी होगी और नई ई-कॉमर्स नीति के मसौदे में डेटा के स्थानीय स्तर पर भंडारण के विभिन्न पहलू शामिल करने होंगे। ग्लोबल डिजिटल कंपनियां अब भारत के टेक्नॉलजी क्षेत्र में तेजी से कदम बढ़ाती दिख रही हैं, इसलिए ध्यान देना होगा कि भारतीय सर्वर पर भंडारित डेटा का दुरुपयोग न हो। नई ई-कॉमर्स नीति के तहत डेटा सिक्योरिटी को मजबूत बनाने और देश के डेटा पर फेसबुक, गूगल जैसी कंपनियों का नियंत्रण खत्म करने का प्रावधान सुनिश्चित करना जरूरी है। उम्मीद करें कि डिजिटलीकरण के साथ-साथ देश की डिजिटल इकॉनमी भी आगे बढ़ेगी। इसपर टैक्स से सरकार की आमदनी बढ़ेगी, रोजगार के मौके बढ़ेंगे, आर्थिक क्रियाकलापों में पारदर्शिता आएगी और भारत के विकास की रफ्तार बढ़ेगी।
(यह लेख लेखक के अपने निजी विचार हैं)